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नाना पाटेकर आणि चला हवा येवू दया

  • नाना पाटेकर आणि चला हवा येवू दया

    प्रकाशनाची तारीख 01-Jan-2017
    प्रकाशनाची तारीख 01-Jan-2017

    आज नाना पाटेकर यांचा वाढदिवस. खूप खूप शुभेच्छा! नामच्या त्यांच्या कामाच्या निमित्ताने चला हवा येऊ द्या कार्यक्रमात त्यांच्यासाठी काही ओळी लिहिल्या होत्या.

    हां वही बारीश
    वही बारीश जो आसमान से आती थी
    बुन्दों में गाती थी
    पहाडों से फिसलती थी
    नदीयों में चलती थी
    नहरों में मचलती थी .......

    आजकल कहीं खो गयी है?
    या फिर थक कर सो गयी है?
    शायद ऐसा भी हो सकता है
    बिना आंसू बादल रो सकता है.....
    हमने भी कितने पेड तोड दिये
    संसद कि कुर्सियों में जोड दिये .
    हमने कुएं बुझा दिये
    नदिया सुखां दी
    विकास की ताकद से
    कुदरत झुका दी.
    शुक्र है अब बच्चे शर्मसे नहीं मरेंगे
    चुल्लू भर पानी के लिये दुआ करेंगे.
    हम शेखचिल्ली नहीं
    हम कहां शाख पर बैठे हैं?
    हम सब अपने शहरोंमें
    गांव की राख पर बैठे हैं.
    शहर में आज भी पानी कम नहीं
    मगर हमारी आंखे नम नहीं.
    जवान देश की मिट्टी के लिये
    किसान खेत की मिट्टी के लिये
    परेशान है , जाग रहा हैं.
    पता नहीं शहरों की भीड में
    कौन कीस के लिये जाग रहा हैं?
    कीस के लिये भाग रहा हैं?
    किसान की समस्या खत्म नहीं होती
    package तो हर साल अस्सी है
    एक भी काम नहीं आता
    छुटकारे के लिये सिर्फ रस्सी हैं.
    परेशान दोनों है ...
    हम सांस बहु के रिश्तों में
    और किसान लोन के किश्तों में.
    लेकीन बँक, बिमा, पेस्टीसाईड, दहेज, मंत्रालय
    किसान कहां कहां भटक सकता है ?
    इंसानोसे अच्छा आज सुखा पेड है
    कम से कम उसे लटक सकता है.
    लेकीन कबतक?
    हाथों पर हाथ धरे
    बारीशका इंतजार करें?
    मेंढक की शादी में दिल बह्लाये
    नंदीबैल की हां में हां मिलाये
    कबतक?
    सुना था राजस्थान में एक जोहड वाला बाबा हैं
    सेहरा में पानी लेकर आया है
    राजेंद्र सिंह नाम है
    दुनिया में छाया है
    हमारे बीच भी कोई होगा ना कोई बारीशवाला बाबा.
    फिल्मों में तो बहुत देखे थे
    वही. वही. वो आगया है
    सस्ती सुंदर टिकाऊ बारीशवाला
    वो फिल्मी नहीं है.
    हमने कहां उसे ठीक से जाना है?
    कोई भगवान या बाबा नही
    बस हमारा अपना नाना है.
    अब हम जान नहीं देंगे
    जान लगा देंगे.
    बारीश को बुलाने के काम में
    हमारे अपने नाम में.
    उम्मीद हैं गांव को देख आपकी भिगी आंखे
    सरकार ही नहीं भगवान को भी जगा देगी
    अगले साल सस्ती सुंदर टिकाऊ बारीश
    हम सबको भीगा देगी
    हम सबको भीगा देगी

    पाउस पडला. मनासारखा. दरवर्षी पडणार. अशी प्रामाणिक माणसं आणि त्यांची धडपड बघून आभाळ सुद्धा मनापासून आशीर्वाद देतं.
    - अरविंद जगताप.

comments

Worship Salunke

अप्रतिम गुरुजी...खरच खूप छान लिहलय..

Prashant Sawant

very good sir

Omkar Mankar

nice

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  • "गोष्ट छोटी डोंगरा ऐवढी" येत आहे पाचवी आवृत्ती

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